Sunday, April 19, 2015

निशि - दिन अब धृतराष्ट्र व गांधारी










निशि - दिन अब धृतराष्ट्र व गांधारी 
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तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब जलाये थे !!

सिर पर उजियारे की पगड़ी 
बाँधे रहा दिया ,
तम अनियारे रखा , देह में 
जब तब रक्त जिया ;
काल - रात्रि में ज्योति - केतु घर - घर फहराये थे !
तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब जलाये थे !!

पर जब भी शातिर अँधियारा 
पसरा धरती पर ,
नक्षत्रों का बोझ लिये 
बेमानी है अम्बर ;
मावस  ने दहशत के ऐसे व्यूह बनाये थे !
तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब जलाये थे !!

अब न दीवाली , निशि - दिन अब 
धृतराष्ट्र व गांधारी ,
और हस्तिनापुर में है 
दुर्योधन की पारी ;
जिसकी ख़ातिर भीष्म - कर्ण ने शस्त्र उठाये थे !
तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब जलाये थे !!

बचकर रहना शकुनी की तुम 
घातक चालों से ,
अभिमन्यु के बधिकों औ '
लाक्षाग्रह वालों से ;
मारो ,ज्यों न भीम से अन्यायी बच पाये थे !
तुमने दीवाली पर दीपक ख़ूब जलाये थे !! 

                                    - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल ''  ,  पृष्ठ - 44









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