Tuesday, April 14, 2015

आप अफ़सोस करते रहे !










   आप अफ़सोस करते रहे !
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    आप अफ़सोस करते रहे ,
    किन्तु वे 
    हर फसल आके चरते रहे !

    हाल बेहाल था ,
    बेबसी का क़दम ताल था ,
    तर हुआ आँसुओं - डूबा रुमाल था ,

    आप उद्घोष करते रहे ,
    किन्तु वे 
    पंख आकर कतरते रहे !

    दर्द बेदर्द था ,
    झेलते -झेलते चेहरा ज़र्द था ,
    क़ातिलों का मगर दिल बहुत सर्द था ,

    आप आक्रोश करते रहे ,
    किन्तु हम 
    सब बिना मौत मरते रहे !

                    - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल ''  ,  पृष्ठ - 37












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