Saturday, September 5, 2015

पुस्तक ( गीत - संग्रह ) - '' बोल मेरे मौन '' से लिया गीत --- '' ढँका बदलियों ने ''









ढँका बदलियों ने उमड़ कर घुमड़ कर ,
मुझे चाँद ने जब निहारा गगन से । 

कोई भावना थी
जो अभिव्यक्ति पाकर 
किसी गीत की 
आज संज्ञा बनी है ,

कोई कामना थी 
जो तुमसे बिछुड़कर
मेरे वास्ते 
आज सन्ध्या बनी है ,

कि पत्थर कहूँ या कहूँ देवता जो ,
न डोला किसी साधना से भजन से ?

ढँका बदलियों ने उमड़ कर घुमड़ कर ,
मुझे चाँद ने जब निहारा गगन से । 


                                              - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' बोल मेरे मौन ''  ,  पृष्ठ - 48


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