Saturday, September 12, 2015

पुस्तक ( गीत - संग्रह ) - '' बोल मेरे मौन '' से लिया गया गीत - '' सपने ''









सपने तो सपने होते हैं । । 

फिर हम सब क्यों उनकी खातिर ,
हँसते हैं अथवा रोते हैं ?
सपने तो सपने होते हैं । । 

इनकी काया बड़ी सलोनी ,
इनमें मायावी अनहोनी 
निंदिया के ये पुत्र , जागरण 
के संग इनकी साँसें खोनी ;

झूठे होकर भी ये सच हैं ,
सच होकर भी हैं ये झूठे ,
ये अभाव को भाव बनाते ,
रचते आँसुओं से फुलबूटे ;

इसीलिए तो अपनों से भी 
ये ज्यादा अपने होते हैं ,
और टूट जाने पर इनके 
हम बच्चों - जैसे रोते हैं । 
सपने तो सपने होते हैं । । 


                              - श्रीकृष्ण शर्मा 

______________________________
पुस्तक - '' बोल मेरे मौन ''  ,  पृष्ठ - 65










sksharmakavitaye.blogspot.in
shrikrishnasharma.wordpress.com
   

No comments:

Post a Comment