Monday, May 4, 2015

अँधियारे की अंधी चुनौती










   अँधियारे की अंधी चुनौती 
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    अँधियारा ,
    अँधियारा , अँधियारा है ,
    इस तम में 
    हर कोई बेचारा है । 

    घर से कैसे 
    कोई बाहर निकले ?
    अंधड़ में बुझे 
    सभी दीपक उजले ;

    है बनी हर तरफ 
    खुद - व - खुद कारा है । 

    सन्ध्या के संग 
    चहल - पहल थम गयी ,
    किरणों की पगडंडी एक 
    गुम गयी ;

    फिर भी 
    कुछ कहते हैं भिनसारा है । 

    कोई तो 
    आगे आ ललकारेगा ,
    अंधी चुनौती को 
    स्वीकारेगा ;

    हाथों धरेगा 
    जो अंगारा है । 

                           - श्रीकृष्ण शर्मा 

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पुस्तक - '' एक नदी कोलाहल ''  ,  पृष्ठ - 61












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