'' खरीफ़ का गीत ''
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सिर से ऊँचा खड़ा बाजरा , बाँध मुरैठा मका खड़ीं ,
लगीं ज्वार के हाथों में हैं , हीरों की सात सौ लड़ी।
पाँव सरपतों पर घर करके
हवा चल रही है सर - सर ,
केतु फहरते हैं काँसों के
बाँस रहे हैं साँसें भर ;
पाँव गड़ाती दूब जा रही , किस प्रीतम के गाँव बढ़ी।
लगीं ज्वार के हाथों में हैं , हीरों की सात सौ लड़ी।
सींग उगा करके सिंघाड़ा
बिरा रह मुँह बैलों का
झाड़ और झंखाड़ खड़े हैं
राह रोक कर गैलों का ;
पोखर की काँपती सतह पर , बूँदों की सौं थाप पड़ीं।
लगीं ज्वार के हाथों में हैं , हीरों की सात सौ लड़ी।
घुइयाँ बैठी छिपी भूमि में
पातों की ये ढाल लिये ,
लेकिन अपनी आँखों में है
अरहर ढेर सवाल लिये ;
फिर भी सत्यानाशी के मन में , है अनगिन फाँस गड़ीं।
लगीं ज्वार के हाथों में हैं , हीरों की सात सौ लड़ी।
पके हुए धानों की फैली
ये जरतारी साड़ी है ,
खंडहर की दीवारों पर ये
काईदार किनारी है ;
छोटे - बड़े कुकुरमुत्तों ने , पहनी है सिर पर पगड़ी।
लगीं ज्वार के हाथों में हैं , हीरों की सात सौ लड़ी।
ले करके आधार पेड़ का
खड़ी हुई लंगड़ी बेलें ,
निरबंसी बंजर के घर में
बेटे - ही - बेटे खेलें ,
बरखा क्या आयी , धरती पर वरदानों की लगी झड़ी।
लगीं ज्वार के हाथों में हैं , हीरों की सात सौ लड़ी।
- श्रीकृष्ण शर्मा
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पुस्तक - '' फागुन के हस्ताक्षर '' , पृष्ठ - 41 , 42
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सुनील कुमार शर्मा
पी . जी . टी . ( इतिहास )
पुत्र – स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा ,
जवाहर नवोदय विद्यालय ,
पचपहाड़ , जिला – झालावाड़ , राजस्थान .
पिन कोड – 326512
फोन नम्बर - 9414771867
धन्यवाद मयंक जी |
ReplyDeleteवाह सारे फसल का मानवीकरण कर दिया आपने वह भी इतने प्यारे शब्दों में।
ReplyDeleteधन्यवाद आशा जोगलेकर जी |
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